शनिवार, 10 अप्रैल 2010
मैदान छोड़ दो!हार मान लो! तुम हार चुके हो
"मैदान छोड़ दो!हार मान लो! तुम हार चुके हो!
वे मुझसे चिल्लाकर कह रहे थे और आग्रह कर रहे थे।
"अब तुम्हारे खिलाफ बहुत ज्यादा मुश्किलें हैं;
इस बार तुम सफल नहीं हो सकते!
और जब मैने अपना सिर
असफलता में झुकाया,
तो एक दौड़ की याद ने
मुझे नीचे गिरने से रोक दिया।
जब मैंने वह दृश्य याद किया,
तो मेरी कमजोर इच्छाशक्ति मजबूत बनने लगी;
क्योंकि उस छोटी सी दौड़ की याद भर से
मेरी आत्मा में स्फूर्ती दौड़ जाती है।
बच्चों की एक दौड़ थी
मुझे कितनी अच्छी तरह याद है।
रोमांच यकीनन!लेकिन डर भी था;
यह बताना मुश्किल नहीं था।
वे सब आशा से भरे लाइन में खडे थे
सभी के मन में सिर्फ दौड़ जीतने का विचार था।
या पहले नम्बर पर टाई करने का या अगर यह न हो सके,
तो कम से कम दूसरे नम्बर पर रहने का।
सभी के पिता बाहर से देख रहे थे
सभी अपने बेटे का हौसला बढा रहे थे।
हर लडका अपने पिता के सामने
दौड़ जीतकर दिखाना चाहता था।
सीटी बजी और वे दौड़ पडे।
छोटे दिल और आशाएँ सुलग रहे थे।
हर छोटे लड़के की इच्छा
जीतने और हीरो बनने की थी।
और एक लडके की खासकर,
जिसके डैडी भीड़ में थे।
वह सबसे आगे दौड़ रहा था और सोच रहा था:
"मेरे डैडी को बहुत गर्व होगा!"
लेकिन अब उसने तेजी से
एक ढ़लान पर दौड लगाई,
तो जीतने के बारे में सोचने वाला वह लडका
लडखडा गया और फिसल गया।
खुद को बचाने की कोशिश करते हुए
उसने अपने हाथ जमीन पर टेकने की कोशिश की,
लेकिन दर्शकों की हँसी के बीच
वह मुँह के बल जमीन पर गिर गया।
वह नीचे गिरा और उसकी उम्मीद भी
-वह अब जीत नहीं सकता-
शर्मिन्दा दुखी होकर वह सोच रहा था
काश वह गायब हो सकता।
लेकिन जब वह गिरा तो उसके डैडी उठकर खडे हुए
और लडके को उनका चिंतित चेहरा दिखा,
जो लड़्के से स्पष्टता से कह रहा था:
"उठो और दौड़ जीत लो"
वह जल्दी से उठा,कोई नुकसान नहीं हुआ था
-वह थोडा सा पिछे था,बस इतनी सी बात थी-
वह पूरी ताकत व मन से भागा,
ताकि गिरने की भरपाई कर सके।
वह आगे निकलने के बारे में इतना चिंतित था
-दूसरों से आगे निकलकर जीतने के लिए-
कि उसका मन उसके पैरों से तेज भागने लगा;
वह फिसल गया और दोबारा गिर गया।
उसने सोचा काश उसने वह दौड़ पहले ही छोड़ दी होती
एक ही अपमान के साथ।
"अब मै धावक के रूप में बेकार हूँ;
अब मुझे कभी दौडने की कोशिस नहीं करनी चाहिए।"
लेकिन उसने हँसती हुई भीड़ में देखा
और उसे वहाँ अपने पिता का चेहरा दिखा;
जिनका स्थाई भाव दोबारा कह रहा था:
"उठो और दौड़ जीत लो!"
इसलिए वह दोबारा कोशिश करने के लिए उछला
-आखिरी धावक से दस गज पीछे-
"अगर मुझे इतने गज का फासला पाटना है,"उसने सोचा,
"तो मुझे बहुत तेज दौडना होगा।"
उसने पूरा दम लगा दिया
उसने आठ या दस को पार भी कर लिया,
लेकिन सबसे आगे निकलने की इतनी ज्यादा कोशिश में
वह एक बार और फिसला और गिर गया।
पराजय!वह यहाँ पर खामोशी से पडा रहा
-उसकी आँख से एक आँसू टपका-
"अब दौडने से कोई फायदा नहीं है-
तीन बार गिर चुका हूँ:अब मैं बाहर हूँ!कोशिश क्यों करूँ?"
उठने की इच्छा गायब हो गई थी;
सारी उम्मीद हवा हो गई थी;
इतना ज्यादा पीछे,इतनी गलतियाँ करने वाला:
पराजित।
"मै हार चुका हूँ,इसलिए क्या फायदा." उसने सोचा,
"मैं अपमान के साथ जी लूँगा।"
लेकिन फिर उसने अपने डैडी के बारे में सोचा,
जिनका उसे जल्द ही सामना करना पडेगा।
"उठ जाओ,"एक आवाज गूँजी।"उठ जाओ और अपनी जगह लो,
तुम यहाँ प असफल होने के लिए नहीं आये हो।
उठो और दौड़ जीत लो।
अपनी इच्छा सकती को जगाओ और उठ जाओ,
"तुम बिल्कुल भी नही हारे हो।
क्योंकि जीतने का मतलब यही है:
जब भी गिरो तो उठ कर खडे हो जाओ।"
इसलिए वह एक बार फिर भागने के लिए उठा
और नये संकल्प के साथ
उस ने ठान लिया कि जीत हो या हार,
कम से कम वह मैदान नहीं छोडेगा।
अब वह दुसरों से बहुत पीछे था
-सबसे पीछे था-
लेकिन फिर भी उसने पूरी ताकत लगा दी,
और ऐसे दौडा जैसे जीतने के लिए दौड रहा है।
वह तीन बार गिरा था;
तीन बार उठा था;
वह इतना ज्यादा पीछे था कि जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी
फिर भी वह आखिर तक दौडा।
दर्शकों ने विजेता धावक के लिए ताली बजाई,
जिसने रेखा को सबसे पहले पार किया।
सिर तना हुआ, गर्वीला और खुस;
न गिरा, न अपमान सहा।
लेकिन जब गिरे हुए बच्चे ने,
सबसे आखिर में लाईन पार की
तो दर्शकों ने उससे भी ज्यादा तालियाँ बजाई।
क्यों कि उसने दौड़ पूरी कर ली थी।
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अच्छी प्रेरक कहानी...
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